ऐसा पहली बार नहीं हुआ जब देश के वीर जवानों ने, और शहीदों के परिवारों ने मैडल राष्ट्रपति को लौटा दिए हों. उन मेडल्स को वापिस लेते हुए राष्ट्रपति को कैसा लगा होगा यह तो मैं नहीं जानता पर मुझे यह पढ़ कर बहुत बुरा लगा, शर्म भी महसूस हुई. क्या हो गया है इस देश को, इस देश की जनता को, इस देश के नेताओं को? क्या कहते हैं, शर्म को पानी में घोल कर पी गए हैं. या कहें, नंग बड़े परमेश्वर से. या फिर्काहें की अगर कुछ शर्म बाकी है तो डूब मरो चुल्लू भर पानी में.
बचपन में पढ़ा था - शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरने वालों का यही बाकी निशाँ होगा.
आने वाले बच्चे पढेंगे - नेताओं के स्मारकों पर लगेंगे हर समय मेले, देश को लूटने वालों का यही बाकी निशाँ होगा.