अब इस में कोई संदेह नहीं रहा कि यह सरकार भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाएगी. इस सरकार का हर कार्य नागरिकों के खिलाफ और भ्रष्टाचारियों के पक्ष में होता है. अब जहाँ भी जब भी चुनाव हो, मतदाताओं को इस भ्रष्ट सरकार और इसकी साथी भ्रष्ट पार्टियों को हराना है.

जन लोकपाल बिल को कानून बनाओ, फिर हमसे वोट मांगने आओ, नहीं तो हार के गहरे समुन्दर में डूबने के लिए तैयार हो जाओ.
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Thursday, November 11, 2010

कौन करेगा भ्रष्टाचार का उन्मूलन?

भ्रष्टाचार पर 'शून्य सहनशीलता' के सिद्धांत की बात करना एक बात है, पर उस पर अमल करना एक दूसरी ही बात है. कांग्रेस ने चवन और कलमाड़ी से इस्तीफा लेकर यह साबित करने की कोशिश की है कि उस के वचन और कर्म में कोई अंतर नहीं है. लेकिन क्या इस्तीफा देने से भ्रष्टाचार सदाचार हो जाता है? दोनों भ्रष्टाचारी अभी भी कांग्रेस के सदस्य हैं. कलमाड़ी ने जिस पद से इस्तीफा दिया वहां तो उस ने कोई भ्रष्टाचार नहीं किया था. उस ने जहाँ भ्रष्टाचार किया वह अभी भी वहीँ और उसी पद पर सारे अधिकारों के साथ जमा हुआ है. यह कैसी शून्य सहनशीलता है? वचन और कर्म में साफ़ अंतर दिखाई दे रहा है.

ए राजा के बारे में कांग्रेस का कहना है कि उसे वर्खास्त न करना गठबंधन राजनीति का धर्म है. अगर राजा कांग्रेस का सदस्य होता तो अब तक वर्खास्त कर दिया गया होता. सरकार बचाने के लिए अगर भ्रष्टाचार को बर्दाश्त किया जाता है तब यह धर्म हुआ या अधर्म? क्या शून्य सहनशीलता में शर्तें होती हैं?

कांग्रेस ने अपने प्रधानमंत्री के साथ अन्याय किया है. सरकार बचाने के लिए मनमोहन जी की क्लीन छबि को दाग दार कर दिया है. भ्रष्टाचारियों का मुखिया सदाचारी नहीं कहा जा सकता. प्रधानमंत्री बनने से पहले मनमोहनजी के प्रति मेरे मन में जो आदर था वह अब नहीं रहा. अगर राष्ट्र को एक परिवार के रूप में देखा जाय और उस का मुखिया भ्रष्टाचारियों को संरक्षण दे तब उस परिवार को नष्ट होने से कोई नहीं बचा सकता.

आज राष्ट्र और समाज के हर अंग को भ्रष्टाचार ने जकड रखा है. कौन मुक्ति दिलाएगा इस जकड़न से? कौन करेगा भ्रष्टाचार का उन्मूलन? क्या हमें फिर एक अवतार की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी?