अब इस में कोई संदेह नहीं रहा कि यह सरकार भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाएगी. इस सरकार का हर कार्य नागरिकों के खिलाफ और भ्रष्टाचारियों के पक्ष में होता है. अब जहाँ भी जब भी चुनाव हो, मतदाताओं को इस भ्रष्ट सरकार और इसकी साथी भ्रष्ट पार्टियों को हराना है.

जन लोकपाल बिल को कानून बनाओ, फिर हमसे वोट मांगने आओ, नहीं तो हार के गहरे समुन्दर में डूबने के लिए तैयार हो जाओ.
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Thursday, February 24, 2011

भ्रष्टाचार का ईलाज है - जन लोकपाल

दैनिक हिंदी हिन्दुतान के २२ फ़रवरी अंक में 'हमारी राय आपकी राय' प्रष्ट पर श्री गिरिराज किशोर का एक लेख छपा है, "भ्रष्टाचार का ईलाज है - जन लोकपाल". आप साथ की इमेज पर क्लिक करके लेख को पढ़ सकते हैं.

इस बात से हर व्यक्ति सहमत होगा कि जन-लोकपाल ही भ्रष्टाचार का सही ईलाज है. इस लिए जो प्रयास के अंतर्गत किया जा रहा है वह सही दिशा में एक निर्णायक कदम है. हर वार्ड में भ्रष्टाचार के विरुद्ध वोट बेंक बनाकर राजनितिक दलों और सरकार को इस बात के लिए मजबूर किया जा सकता है कि वह जन-लोकपाल बिल को कानून बनाए.

३० जनवरी को दिल्ली में और देश के अन्य ६० शहरों में भ्रष्टाचार के विरुद्ध हुई रैलिओं के प्रति मीडिया के एक बड़े अंग की उदासीनता मीडिया की विश्वसनीयता पर एक प्रश्न चिन्ह लगाती है. क्या मीडिया ने सरकार के प्रतिनिधि के रूप में काम करना शुरू कर दिया है? क्या मीडिया कर्मीं पद्म एवार्ड्स के लिए सरकार के भाट बन गए हैं? क्या मीडिया नहीं चाहता कि भारत एक भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र बने? कारण चाहे जो भी हो ३० जनवरी की रैली को समाचारों में उचित स्थान न दे कर मीडिया ने देश और जनता का विश्वास और ज्यादा खो दिया है.

Friday, January 28, 2011

एक और स्केम - सर्वोच्च स्तर पर भ्रष्टाचार

सुप्रीम कोर्ट में सरकार का नया झूट
क्या आप सपने में भी यह सोच सकते हैं कि जब प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक सर्वोच्च अधिकार प्राप्त समिति देश के केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त का चयन करती है तब उम्मीदवारों के बारे में पूरी जानकारी समिति के सामने नहीं होती? नहीं सोच सकते न? मैं भी नहीं सोच सकता, पर ऐसा हुआ है. भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त पद के लिए चयन करते समय समिति के सामने एक उम्मीदवार पी जे थामस के खिलाफ भ्रष्टाचार के लिए चार्ज शीट और केरल सरकार द्वारा उन पर मुकदमा चलाये जाने की अनुमति के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. विस्तृत वर्णन के लिए क्लिक करें.

यह सर्व विदित है कि इस ३ सदस्यीय समिति में प्रधानमंत्री के अलाबा गृह मंत्री और लोक सभा में विपक्ष के नेता होते हैं. विपक्ष की  नेता ने थामस के खिलाफ इस चार्ज के बारे में समिति को बताया था और उनको इस पद के लिए चुने जाने पर अपना विरोध दर्ज कराया था. लेकिन समिति ने २:१ से इस ऐतराज को रद्द करते हुए थामस को केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त के पद के लिए चुन लिया. आज कल सुप्रीम कोर्ट में इस बारे में सुनवाई हो रही है.

एक बहुत छोटे पद के लिए भी सरकारी कर्मचारियों के बारे में सम्बंधित विभाग चयन समिति को पूरा विवरण देता है जिस में विजिलेंस सम्बन्धी जानकारी भी होती है. लेकिन यहाँ देश के केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त पद के लिए चयन हुआ, चयन समिति के अध्यक्ष स्वयं प्रधान मंत्री थे, गृह मंत्री और विपक्ष के नेता समिति के सदस्य थे, पर सरकार के अनुसार यह जानकारी सम्बंधित विभाग द्वारा समिति को नहीं दी गई. मजे की बात यह है कि इस सम्बंधित विभाग के मंत्री प्रधानमंत्री स्वयं हैं. अब यह तो अपने आप में खुद एक स्केम हो गया.

अब बताइए इस देश में भ्रष्टाचार कैसे कम होगा?

Saturday, January 22, 2011

सुखी जीवन के लिए कितना धन चाहिए ?

भोपाल के आईएएस दंपत्ति, अरविन्द और टीनू  के पास ३६० करोड़ रुपये की धन-संपत्ति पाई गई है, जिन में ३ करोड़ रुपये १००० रुपये के नोटों में सूटकेसेस में भरे पाए गए. उनके पास २५ फ्लेट्स हैं, ४०० एकड़ खेती-योग्य और दूसरी जमीन है तथा काफी पैसा स्टाक्स में लगाया हुआ है. एक परिवार को रहने के लिए कितने फ्लेट्स चाहियें? कितनी जमीन चाहिए? कितना नकद पैसा चाहिए? अरविन्द और टीनू जैसे अनेक लोग इस देश में हैं जिन के पास अथाह धन-संपत्ति है, यानि उनकी अपनी आवक्श्यकता से बहुत अधिक धन है. क्या खाते हैं यह लोग? क्या पहनते हैं? कितने मकानों में एक साथ रहते हैं? एक प्रश्न मन में आता है कि सुखी जीवन के लिए आखिरकार कितना धन चाहिए?

किसी भी व्यक्ति के पास आवश्यकता से बहुत अधिक धन नहीं होना चाहिए. मनुष्य की मुख्य आवश्यकताएं होती हैं, रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा, मनोरंजन, आवागमन. इनके लिए मनुष्य के पास समुचित धन होना चाहिए. कुछ धन की वचत भविष्य के लिए भी करनी चाहिए. इसके अतिरिक्त जो भी धन होता है वह ऐसे अनावश्यक कार्यों में खर्च होता है जिनसे मनुष्य के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. अगर नागरिक
शारीरिक और मानसिक रूप से अस्वस्थ होंगे तब समाज और देश भी अस्वस्थ होगा. आज यह सब कुछ होता दिखाई दे रहा है.

आवश्यकता से बहुत अधिक धन ईमानदारी से नहीं कमाया जा सकता. उसके लिए कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में बेईमानी करनी ही पड़ती है, भ्रष्टाचार करना ही पड़ता है. बेईमानी और भ्रष्टाचार द्वारा कमाया गया पैसा आता कहाँ से है? यह पैसा आम नागरिकों की जेब से आता है. जो पैसा एक आम नागरिक को अपने और अपने परिवार की जरूरी आवश्यकताओं पर खर्च करना था वह उस से छीन लिया जाता है और बेईमानी और भ्रष्ट रास्तों द्वारा कुछ और नागरिकों की जेब में चला जाता है. न जाने कितने आम नागरिक एक सुखी जीवन ब्यतीत करने से बंचित हो जाते हैं. किसी के पास खाने के लिए पैसा नहीं होता, किसी के पास तन ढंकने के लिए कपड़ा, किसी के पास सर छुपाने के लिए छत, बीमारी के लिए दवा, बच्चों को स्कूल भेजने के लिए फीस, और अन्य साधन नहीं होते. किसी के पास इतना पैसा हो जाता है कि उसे रखने के लिए सूटकेस खरीदने पड़ते हैं. 

इंसान और इंसान के बीच की यह असमानता समाज को अस्वस्थ कर देती है. सुखी जीवन से बंचित कर दिए गए कितने ही आम नागरिक हिंसा के रास्ते पर चले जाते हैं, समाज में अपराध बढ़ जाता है. पुलिस, न्यायपालिका और सरकार इन बंचित नागरिकों पर और अन्याय करना शुरू कर देती है. उनकी मजबूरी न समझ कर उनके साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार करती है कि उनमें से कुछ नागरिक घोर अपराधी बन जाते हैं. जिन्होनें इन्हें अपराधी बनाया उन्हें पुरूस्कार दिए जाते हैं, उन्हें सम्मानित नागरिक कहा जाता है, वीआईपी और वीवीआईपी जैसे उपाधियों से नवाजा जाता है.

अरविद-टीनू और इन जैसे कितने बेईमान और भ्रष्टाचारी आज समाज के सामने नंगे खड़े हैं पर क्या इन्हें इनके अपराधों का कोई दंड मिल पायेगा? कानून को इस तरह तोडा-मरोड़ा जाएगा कि अंततः यह सब अपराधी सम्मान पूर्वक सुखी जीवन बिताने रहेंगे और इस महान राष्ट्र के असहाय आम नागरिक
सम्मान पूर्वक सुखी जीवन बिताने से बंचित किये जाते रहेंगे.

Friday, January 21, 2011

भ्रष्टाचारियों को सुरक्षा, विरोधकर्ताओं पर लाठीचार्ज

साथ की फोटो पर क्लिक करें और पढ़ें. उत्तर प्रदेश में अगर आप से रिश्वत मांगी जाए तब चुपचाप दे दें, विरोध करने पर आप को पुलिस की लाठियों का सामना करना पड़ेगा. आप को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. मजिस्ट्रेट इस बात पर नाराज हो जाएगा की पुलिस ने आप को हथकड़ी क्यों नहीं लगाई. आप पर गैर-जमानती आरोप लगा कर जेल भेज दिया जाएगा.

यह सब अरविन्द केजरीवाल और उनके साथिओं के साथ हुआ. वह एक जाने-माने सूचना अधिकार से सम्बंधित सक्रीय कार्यकर्ता हैं. अभी वह डासना जेल के रास्ते में ही थे की उच्च पुलिस अधिकारियों को इस की जान कारी कहीं से मिल गई और वह रिहा कर दिए गए.

अपने लेख के अंत में अरविन्द कहते हैं, इस का मतलब हुआ की पुलिस कभी भी किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है, उस पर कोई भी आईपीसी सेक्शन लगा सकती है, मजिस्ट्रेट आँखें बंद कर के पुलिस की बात मानेगा और आप को जेल भेज देगा, आप अपने बेगुनाह होने की बात करेंगे तो मजिस्ट्रेट कहेगा, पहले आप जेल जाओ, पुलिस बाद में आप के अपराध की जांच कर लेगी. है न कितना डरावना !!!

भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं?

एक ईमानदार वन अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के साथ पांच वर्ष से हो रहे अत्याचार पर शायद अब लगाम लग जायेगी. यह अधिकारी हरयाणा की सरस्वती वनजीवन अभ्यारण्य का प्रभारी था. इस का दोष यह था कि इसने एक नहर निर्माण में बहु-करोड़ घोटाले का भंडाफोड़ किया था. भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई, पर पांच वर्षों में इस अधिकारी का १२ बार तबादला किया गया, पदोन्नति नहीं की गई, एक झूटी चार्जशीट लगा कर सस्पेंड किया गया. केन्द्रीय अधिकारियों द्वारा जांच की रिपोर्ट में इस अधिकारी को निर्दोष पाया गया, और वन मंत्री किरण चौधरी और अन्य कई अधिकारियों को दोषी पाया गया. लेकिन हरयाणा सरकार इसे दण्डित करने पर अड़ी रही और नौकरी से बर्खास्त करने की धमकियाँ देती रही.

अब केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री ने इस अधिकारी पर लगाए गए सारे आरोपों को रद्द कर दिया है. इस बारे में राष्ट्रपति के आदेश के जल्दी आ जाने की सम्भावना है. 

अब प्रश्न यह है, क्या दोषी मंत्री और अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही की जायेगी या हरयाणा सरकार, उस के मंत्री और अफसरों को इस अपराध के लिए माफ़ कर दिया जाएगा?

मेरी पिछली पोस्ट पढ़ें:
सरकार भ्रष्टाचारियों के साथ है
सरकार द्वारा भ्रष्टाचार का पोषण

Tuesday, January 18, 2011

Govt survives on corruption and corrupt

The question which SC asked the Govt is a question which every Indian citizen is asking - "How P J Thomas will function as CVC - Whenever he will entertain a complaint and order inquiry, he will face the question - 'you yourself are an accused, how can you look in to another complaint'."The Govt has not answered this question but is harping on its prerogative as an appointing authority.

The Govt says that unanimity in a democratic selection process does not always work. OK, it is accepted, but how the majority view is achieved? The panel has three members, PM, Home Minister and Leader of Opposition. PM and HM belong to the Govt. They will always have the same view. If LoP is having a different view then it will have no effect. In this case it has haapened. PM and HM wanted Thomas so he was appointed as CVC. LoP pointed out towards the fact that Thomas is a tainted person as he was accused of criminal conspiracy in the palmolein oil import scam. What effect it had on the choice of Thomas as CVC? What is the use of having such a panel? Whom the Govt is making fool of? If the panel had equal number of members fron Govt and opposition then it was not possible for a tainted Thomas to become CVC.

Another point, the Govt had asked Thomas to resign. Why did it do so, if what it says in the affidavit is correct - "The PM and the home minister found Thomas as the most suitable candidate to hold the post of CVC".



The cat is out of the bag. Govt attitude in case of every scam is clear. It wants to protect the corruption and the corrupt. Its survival is dependent on the survival of corruption and the corrupt. They are the family.

Wednesday, January 12, 2011

सरकार द्वारा भ्रष्टाचार का पोषण

कुछ दिन पहले मैंने एक पोस्ट लिखी थी - सरकार भ्रष्टाचारियों के साथ है. इस में मैंने लिखा था कि किस प्रकार एक ईमानदार और कर्तव्य परायण अधिकारी को हरियाणा सरकार इस लिए परेशान कर रही है क्योंकि उस ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई थी. संजीव चतुर्वेदी के पांच वर्ष में १२ तबादले किये गए, झूठी चार्जशीट दी गई, फिर सस्पेंशन किया गया, कोई पदोन्नति नहीं, प्रदेश सरकार द्वारा डिसमिस करने की धमकी दी गई. भ्रष्टाचारियों में एक की पदोन्नति हो गई, एक को प्लम पोस्टिंग मिली. प्रदेश सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही करने के बजाय भ्रष्टाचारियों के साथ मिल गई. केंद्र सरकार की जाँच में यह सिद्ध हो गया कि संजीव को फंसाया गया है, चार्जशीट झूठी है, पर कुछ नहीं किया गया. मीडिया में बात उठी तब केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ने चार्जशीट को रद्द किया, पर अब यह पता चला है कि यह मंत्री भी पलट गया और मामला फिर दोषी प्रदेश सरकार के सवाले कर दिया गया, जो अब संजीव को डिसमिस करने जा रही है.

केंद्र सरकार भ्रष्टाचार पर शून्य सहनशीलता की बात करती है पर भ्रष्टाचार न सिर्फ बढ़ता जा रहा है बल्कि खुद सरकार भी भ्रष्टाचारियों की ही मदद कर रही है. प्रधानमंत्री और सोनिया भाषण देते हैं पर करते कुछ नहीं. संजीव पर अत्याचार बढ़ता जा रहा है. उस बेचारे को नौकरी ही खतरे में पड़ गई है. अब इस में किसी को संदेह नहीं होना चाहिए कि सरकार हकीकत में भ्रष्टाचार का पोषण कर रही है. इस सरकार के रहते भ्रष्टाचार कम होने वाला नहीं है.

Friday, December 31, 2010

सरकार भ्रष्टाचारियों के साथ है

पिछले वर्षों में भ्रष्टाचार के जितने भी मामले सामने आये, जिस तरह उन्हें दबाने की कोशिश की गई, दबा पाने पर जिस तरह उनकी जांच कराई गई, जिस तरह दोषियों को क्लीन चिट दिलवाई गई, उसके बाद अब किसी के मन में यह संदेह नहीं रहना चाहिए कि सरकार भ्रष्टाचार का उन्मूलन करना चाहती है. सरकार पूरी तरह से भ्रष्टाचारियों के साथ है.

सरकार भ्रष्टाचार पर शून्य सहनशीलता की बात करते थकती नहीं और भ्रष्टाचार बढ़ते हुए थकता नहीं. भ्रष्टाचार का कोई मामला सामने आता है, विपक्ष दोषियों के खिलाफ कार्यवाही की मांग करता है, सरकार विपक्ष पर ही हमला बोल देती है. एक ईमानदार अधिकारी, एक नागरिक, भ्रष्टाचार पर सीटी बजाता है और सरकार उनके ही पीछे पड़ जाती है. कुछ बेचारे तो अपनी जान से ही हाथ धो बैठे. साथ की फोटो पर क्लिक करें और पढ़ें कि संजीव चतुर्वेदी के साथ क्या किया गया - पांच वर्ष में १२ तबादले, झूटी चार्जशीट, सस्पेंशन, कोई पदोन्नति नहीं, प्रदेश सरकार द्वारा डिसमिस करने की धमकी. अब भ्रष्टाचारियों का देखिये - एक की पदोन्नति हो गई, एक को प्लम पोस्टिंग मिली. प्रदेश सरकार भ्रष्टाचारियों के साथ मिल गई. केद्र सरकार कुछ करके, प्रदेश सरकार को ४५ दिन दे रही है कि भैया कुछ करो.

अधिकारी भ्रष्टाचार करते हैं. मंत्री भ्रष्टाचार करते हैं. प्रधानमंत्री कहता है मैं ईमानदार हूँ. मैं कहता हूँ
सरकार भ्रष्टाचारियों के साथ है.

Sunday, December 12, 2010

Citizens have lost all faith in CVC

December 9 was celeberated as International Anti-corruption Day. Tainted CVC P J Thomas launched a portal called 'Vig-Eye' where citizens can upload videos or audio clips exposing corrupt acts in Govt departments. Facility of on-line registration of compalints is already available on CVC website. Citizens can send complaints by other means also.

The need of the citizens is that appropriate action should be taken on complaints lodged by them. My experience with CVC is highly unsatisfactory. I lodged a complaint with CVC against CD ROM Scam in Bureau of Indian Standards (BIS), India's National Standards Body, working under Ministry of Consumer Affairs. CVC registered the complaint and forwarded it to CVO in BIS on 27.01.2010 to investigate and send report to CVC in three months. Today it 12.12.2010 (more than 10 months) but CVO BIS has not sent the investigation report to CVC. I have sent number of reminders but CVC does seem to have lost all interest in this scam where BIS has been put to a loss of Rs 5 Crores and a daily recurring loss of Rs. 65,000. All officers involved in the scam have been promoted and are enjoying the best of life.

What is the use of 21st century technology if no action is taken on the complaints lodged by the citizens? CVC and CVOs appointed by CVC are not working to remove corruption but are providing protection to corruption. Citizens have lost all faith in CVC.

Friday, November 26, 2010

Dr APJ Abdul Kalam on corruption

Dr Kalam's visualisation of India in the year 2020 includes a nation where the govrnance is responsive, transparent and corruption free, where the rural and urban divide has reduced to a thin line and the agriculture, industry and service sector work together in symphony. Today's governance lacks responsiveness and transparency resulting in corruption becoming a big problem being faced by the country. Everybody will agree with Dr Kalam that righteousness is the solution to it.

Tuesday, November 23, 2010

CVC accused in a criminal case

A bench headed by Chief Justice SH Kapadia observed today that."without looking into the file, we are concerned that if a person is an accused in a criminal case how will he function as CVC." Bench made this observation after attorney general GE Vahanvati placed records of documents pertaining to Thomas appointment in a sealed cover. The name of Thomas figures in a charge sheet filed in a palmoleine export case.

The Congress Govt makes high claims on zero tolerance on corruption and yet it appoints, ignoring objections of Leader of Opposition, Thomas as CVC. Any person having any direct or indirect taint should not be appointed on constitutional posts. It sends wrong signals. The Govt has compromised the credibility of the institution of CVC. CBI has already lost the confidence of the people. How the people of India will be expected to believe that the Govt is sincere on the issue of corruption when it says something but does something opposite to that.

Source

Thursday, November 11, 2010

कौन करेगा भ्रष्टाचार का उन्मूलन?

भ्रष्टाचार पर 'शून्य सहनशीलता' के सिद्धांत की बात करना एक बात है, पर उस पर अमल करना एक दूसरी ही बात है. कांग्रेस ने चवन और कलमाड़ी से इस्तीफा लेकर यह साबित करने की कोशिश की है कि उस के वचन और कर्म में कोई अंतर नहीं है. लेकिन क्या इस्तीफा देने से भ्रष्टाचार सदाचार हो जाता है? दोनों भ्रष्टाचारी अभी भी कांग्रेस के सदस्य हैं. कलमाड़ी ने जिस पद से इस्तीफा दिया वहां तो उस ने कोई भ्रष्टाचार नहीं किया था. उस ने जहाँ भ्रष्टाचार किया वह अभी भी वहीँ और उसी पद पर सारे अधिकारों के साथ जमा हुआ है. यह कैसी शून्य सहनशीलता है? वचन और कर्म में साफ़ अंतर दिखाई दे रहा है.

ए राजा के बारे में कांग्रेस का कहना है कि उसे वर्खास्त न करना गठबंधन राजनीति का धर्म है. अगर राजा कांग्रेस का सदस्य होता तो अब तक वर्खास्त कर दिया गया होता. सरकार बचाने के लिए अगर भ्रष्टाचार को बर्दाश्त किया जाता है तब यह धर्म हुआ या अधर्म? क्या शून्य सहनशीलता में शर्तें होती हैं?

कांग्रेस ने अपने प्रधानमंत्री के साथ अन्याय किया है. सरकार बचाने के लिए मनमोहन जी की क्लीन छबि को दाग दार कर दिया है. भ्रष्टाचारियों का मुखिया सदाचारी नहीं कहा जा सकता. प्रधानमंत्री बनने से पहले मनमोहनजी के प्रति मेरे मन में जो आदर था वह अब नहीं रहा. अगर राष्ट्र को एक परिवार के रूप में देखा जाय और उस का मुखिया भ्रष्टाचारियों को संरक्षण दे तब उस परिवार को नष्ट होने से कोई नहीं बचा सकता.

आज राष्ट्र और समाज के हर अंग को भ्रष्टाचार ने जकड रखा है. कौन मुक्ति दिलाएगा इस जकड़न से? कौन करेगा भ्रष्टाचार का उन्मूलन? क्या हमें फिर एक अवतार की प्रतीक्षा करनी पड़ेगी?

Wednesday, November 10, 2010

Govt protects corruption to survive

Does Govt really want to eradicate corruption? Is Congress honest in saying that it has zero tolerance on corruption? Answer to these questions is a big NO.

Recent appointment of P J Thomas as CVC has once again confirmed that Congress has double standards on corruption. Congress talks of zero tolerance on corruption but in reality it protects corruption. Supreme Court is now examining whether new CVC can be called an outstanding civil servant with an impeccable track record.

Any Govt which compromises for its survival can not be called an honest Govt; and a Govt which is not honest can not be act against corruption. It could only find P J Thomas as new CVC, who as Telecom Sec had questioned the old CVC's attempt to look in to the alleged Rs. 140,000 crore 2 G spectrum scam. It is also alleged that P J Thomas had promoted corrupt officers to top posts in MTNL and BSNL.

How can India fight against corruption with congress in power and Thomas as CVC?

Tuesday, November 02, 2010

How to root out corruption

Arvind Kejriwal has wrtitten an article in Times of India, titled "How to root out corruption". He has rightly pointed out that the present anti-corruption laws and systems in our country suffer from internal contradictions. There is a plethora of anti-corruption agencies. In each of these agencies, the government has deliberately left some critical loophole so as to make it ineffective.

He suggests that all these anti-corruption agencies should be merged into one single agency, the Lokpal. Give it jurisdiction over both bureaucrats and politicians. Give it comprehensive powers to investigate and prosecute the guilty without needing any permission.

fight against organized corruption


Will India win fight against organized corruption with this CBI?





Records of corruption set by Maha CMs. Name is Adarsh Society, but actions ........
Netas, babus, generals, admirals, all have shamed the nation.

Friday, October 22, 2010

Story of a corrupt Chief Viglance Officer (CVO)

Central Vigilance Commission (CVC) appoints CVO in various government offices. Think what will happen if this CVO himself is corrupt. Here is the story of a CVO officer:

"Running a fake institute from within the IIT Kharagpur Campus is not the only way in which Amit Kumar Ghosh of the aerospace department made his name. From 2006 to 2008, Ghosh was chairman of Joint Entrance Examination, Kharagpur, when the maximum number of bunglings took place. Documents with TOI show that he not only gave false statements but on his charge, material related to JEE was destroyed despite clear rules that it be retained for a year.
Ironically, he was chief vigiliance officer of IIT, Kharagpur till recently.
On August 24, 2006, much after students had taken admission in IITs, as individual marks of candidates were released, it was found that students scoring just 154 marks were declared qualified though students with 279 marks were disqualified.
If this was not enough, Ghosh's response to a student who had not qualified despite scoring 231 marks (104 in physics, 75 in maths and 52 in chemistry) was that "he has not satisfied the marks eligibility criteria laid down for individual subjects as well as the aggregate marks in JEE 2006".
It was revealed in May 2007 that cutoffs for maths, physics, chemistry and aggregate were 37, 48, 55 and 154 respectively for general category students in JEE 2006, and the candidate in question scored much higher marks. But the procedure for cutoff calculation revealed by IITs showed that for maths, physics and chemistry, it should have been 7, 4 and 6 respectively instead of official figure of 37, 48 and 55.
Four different cutoff procedures submitted by IITs could not come to the stated official cutoffs. It also came to light that 994 candidates were deprived of admission due to discrepancy in calculation of cutoffs.
Even as pressure was mounting on IIT directors, chairpersons of board of governors and council members about irregularities, Ghosh sought an approval on October 31, 2006 for shredding of JEE specific material, including ORS scripts. The IIT statute clearly states that JEE papers will not be destroyed for a year."


(Source - TOI)

Monday, October 11, 2010

भ्रष्टाचार - हम सिर्फ बातें करें, इसे दूर कोई और करे

सुप्रीम कोर्ट ने बहुत चिंता जताते हुए कहा कि सरकारी महकमों में बिना पैसा दिए कुछ नहीं होता. मोइली मंत्री ने कहा कि न्यायिक जबाबदेही बिल बस आने वाला है. रिटायर्ड मुख्य विजिलेंस कमिश्नर, सिन्हा ने कहा कि हर तीसरा इंडियन भ्रष्ट है. बाबू और राजनीतिबाज को भ्रष्टाचार से अलग कर के देखना तो क्या सोचना भी संभव नहीं है. किसी मंत्री का भ्रष्टाचार जब ख़बरों का विषय बन जाता है तब प्रधानमंत्री उसे क्लीन चिट दे देते हैं. काला धन खेलों में रिकार्ड भ्रष्टाचार पर 'देश की शान पर बट्टा न आये' का पर्दा डाल दिया केंद्र और दिल्ली सरकार ने.

भ्रष्टाचार है, भ्रष्टाचार है, ऐसा कहने वाले आप को बहुत मिल जायेंगे. एक तरह का फैशन हो गया है यह सब कहना. पर इस भ्रष्टाचार को दूर कौन करेगा? क्या कहने भर से यह भ्रष्टाचार दूर हो जाएगा? प्रधानमंत्री को क्या नजर नहीं आता कि उनके कई मंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त हैं पर वह उन पर कार्यवाही करने की जगह उन्हें क्लीन चिट देते हैं. सेन्ट्रल बेंक आफ इंडिया का एक अधिकारी बेंक के चैयरमेन एवं मेनेजिंग डाइरेक्टर पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाता है, वित्त मंत्रालय कई आरोप सही हैं इसकी पुष्टि भी करता है, पर केन्द्रीय सतर्कता आयोग उसकी शिकायत बंद कर देता है. बेंक कांग्रेस के एक प्रवक्ता को मुकदमा लड़ने के लिए लाखों रुपया देता है. सब मजे करते हैं, बस अधिकारी को प्रताड़ित किया जाता है.

इक्का-दुक्का भ्रष्टाचार करने वाले धर लिए जाते हैं, उन्हें सजा भी मिल जाती है, पर संगठित भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कुछ नहीं होता. सारी व्यवस्था ऐसे संगठित भ्रष्टाचारियों को सुरक्षा प्रदान करती है. शिकायत करने वाले (सीटी बजाने वाले) बेचारे अपनी नागरिक जिम्मेदारी निभाने के चक्कर में मारे जाते हैं. कितने ऐसे शिकायत कर्ताओं को मार दिया गया पर किसी अपराधी को सजा नहीं मिली.

सुप्रीम कोर्ट पहले कहता है कि सरकारों महकमों में भ्रष्टाचार है पर आगे कहता है कि बेचारे गरीब सरकारी अफसरों को भी कैसे ब्लेम किया जाय इस बढती महंगाई में? यह कैसी जिम्मेदारी निभाई सुप्रीम कोर्ट ने? छटे वेतन आयोग के बाद पगार दुगनी-तिगनी बढ़ गई है पर सुप्रीम कोर्ट के अनुसार महंगाई बाबुओं को भ्रष्ट बना रही है. सुप्रीम कोर्ट ने भी आखिरकार क्लीन चिट ही दे दी बाबुओं को. एक गाना आया है - सखी सैयां तो खूबही कमात है, महंगाई डायन खाए जात है.

Sunday, October 10, 2010

Fight against organized corruption

This is the story of a whistleblower, Abhijit Ghosh, who has retired as General Manager of Central Bank of India. He blew the whistle on H A Daruwalla, then Chairperson and Managing Director of the bank. In the eyes of the bank, Central Vigilance Commission (CVC), Government, he has committed a crime of exposing the organized corruption in the bank. He was harassed and victimized.

He had filed a comprehensive complaint before CVC against corruption of Daruwalla. CVC closed his complaint. CVC was wrong. It proved to be a part of the organized corruption chain. In August 2010, Ministry of Finance had informed the CVC that some of the allegations against daruwalla stand proved. But Daruwalla gets a clean chit and Ghosh is victimized.

Bank had paid Rs. 69.24 lakhs to lawyers to prove a corrupt Daruwalla clean. Out of this Rs. 48.5 lakhs was paid to Congress spokesman, Abhishek Manu Singhvi. Is this not RISHWAT? This is the charactersitic of organized corruption, involve as many influential people in the corruption so that to help themselves they help the corrupt.

CVC which is supposed to be the watchdog against corruption is a part of the organized corruption chain. When Paratyush Sinha CVC retired, he gave a statement that every third Indian is corrupt. On this a minister commented that some bureaucrats become saint after retirement. CLICK TO READ.

Friday, October 01, 2010

Jug Suraiya's Ghoos Story

When Jug Suraiya says that he himself is the source of corruption, he says it for all of us. Each one of us is responsible for corruption. My blog says 'Fight Corruption'. At one time or the other, each one of us say, 'Fight Corruption'. When we say this, we mean the corruption which is happenning around us. After reading the 'Ghoos Story' a thought struck me that what about the corruption within me, what about the corruption for which I am responsible? So, when I say 'Fight Corruption', it should not be to fight 'external corruption' only but it should also include 'internal corruption'.

From now onwards, my fight against corruption will be against both external and internal corruption. This is nothing new. It is a part of our culture, mansa, vaacha, karmana - no corruption in speech and action but also in our thoughts.

Corruption may have become something unavoidable, something we have to learn to live with, but our goal should be zero corruption. Every moment we should aim to achieve zero corruption. We know the present level of corruption, ours and others. Let us call it X and Y. We should work to contunually improve the corruption benchmark from X and Y to Zero. We may not achieve it in our lifetime but whatever improvement we are able to make will be a service to the mankind. This will take us near to God. It will purify us, our thoughts, speech and actions.