अब इस में कोई संदेह नहीं रहा कि यह सरकार भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाएगी. इस सरकार का हर कार्य नागरिकों के खिलाफ और भ्रष्टाचारियों के पक्ष में होता है. अब जहाँ भी जब भी चुनाव हो, मतदाताओं को इस भ्रष्ट सरकार और इसकी साथी भ्रष्ट पार्टियों को हराना है.

जन लोकपाल बिल को कानून बनाओ, फिर हमसे वोट मांगने आओ, नहीं तो हार के गहरे समुन्दर में डूबने के लिए तैयार हो जाओ.

Monday, October 11, 2010

भ्रष्टाचार - हम सिर्फ बातें करें, इसे दूर कोई और करे

सुप्रीम कोर्ट ने बहुत चिंता जताते हुए कहा कि सरकारी महकमों में बिना पैसा दिए कुछ नहीं होता. मोइली मंत्री ने कहा कि न्यायिक जबाबदेही बिल बस आने वाला है. रिटायर्ड मुख्य विजिलेंस कमिश्नर, सिन्हा ने कहा कि हर तीसरा इंडियन भ्रष्ट है. बाबू और राजनीतिबाज को भ्रष्टाचार से अलग कर के देखना तो क्या सोचना भी संभव नहीं है. किसी मंत्री का भ्रष्टाचार जब ख़बरों का विषय बन जाता है तब प्रधानमंत्री उसे क्लीन चिट दे देते हैं. काला धन खेलों में रिकार्ड भ्रष्टाचार पर 'देश की शान पर बट्टा न आये' का पर्दा डाल दिया केंद्र और दिल्ली सरकार ने.

भ्रष्टाचार है, भ्रष्टाचार है, ऐसा कहने वाले आप को बहुत मिल जायेंगे. एक तरह का फैशन हो गया है यह सब कहना. पर इस भ्रष्टाचार को दूर कौन करेगा? क्या कहने भर से यह भ्रष्टाचार दूर हो जाएगा? प्रधानमंत्री को क्या नजर नहीं आता कि उनके कई मंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त हैं पर वह उन पर कार्यवाही करने की जगह उन्हें क्लीन चिट देते हैं. सेन्ट्रल बेंक आफ इंडिया का एक अधिकारी बेंक के चैयरमेन एवं मेनेजिंग डाइरेक्टर पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाता है, वित्त मंत्रालय कई आरोप सही हैं इसकी पुष्टि भी करता है, पर केन्द्रीय सतर्कता आयोग उसकी शिकायत बंद कर देता है. बेंक कांग्रेस के एक प्रवक्ता को मुकदमा लड़ने के लिए लाखों रुपया देता है. सब मजे करते हैं, बस अधिकारी को प्रताड़ित किया जाता है.

इक्का-दुक्का भ्रष्टाचार करने वाले धर लिए जाते हैं, उन्हें सजा भी मिल जाती है, पर संगठित भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कुछ नहीं होता. सारी व्यवस्था ऐसे संगठित भ्रष्टाचारियों को सुरक्षा प्रदान करती है. शिकायत करने वाले (सीटी बजाने वाले) बेचारे अपनी नागरिक जिम्मेदारी निभाने के चक्कर में मारे जाते हैं. कितने ऐसे शिकायत कर्ताओं को मार दिया गया पर किसी अपराधी को सजा नहीं मिली.

सुप्रीम कोर्ट पहले कहता है कि सरकारों महकमों में भ्रष्टाचार है पर आगे कहता है कि बेचारे गरीब सरकारी अफसरों को भी कैसे ब्लेम किया जाय इस बढती महंगाई में? यह कैसी जिम्मेदारी निभाई सुप्रीम कोर्ट ने? छटे वेतन आयोग के बाद पगार दुगनी-तिगनी बढ़ गई है पर सुप्रीम कोर्ट के अनुसार महंगाई बाबुओं को भ्रष्ट बना रही है. सुप्रीम कोर्ट ने भी आखिरकार क्लीन चिट ही दे दी बाबुओं को. एक गाना आया है - सखी सैयां तो खूबही कमात है, महंगाई डायन खाए जात है.

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