अब इस में कोई संदेह नहीं रहा कि यह सरकार भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कोई सख्त कदम नहीं उठाएगी. इस सरकार का हर कार्य नागरिकों के खिलाफ और भ्रष्टाचारियों के पक्ष में होता है. अब जहाँ भी जब भी चुनाव हो, मतदाताओं को इस भ्रष्ट सरकार और इसकी साथी भ्रष्ट पार्टियों को हराना है.

जन लोकपाल बिल को कानून बनाओ, फिर हमसे वोट मांगने आओ, नहीं तो हार के गहरे समुन्दर में डूबने के लिए तैयार हो जाओ.

Monday, January 31, 2011

Create a corruption free India

Yes, you can defeat corruption and create a corruption free India.

The final struggle against corruption has started, and together we will root it out from our country.
Why is it that no one goes to jail despite so much evidence of corruption in public domain? In order to create an effective deterrence against corruption, “India Against Corruption” has drafted Jan Lokpal Bill and Jan Lokayukta Bill, which if enacted would ensure that corrupt people go to jail within two years of complaint and their ill gotten wealth is confiscated.

Vote against corruption

Commit your vote against corruption in next elections. Parties and politicians create vote banks on religious and caste lines. Let us all create a vote bank against corruption.
Individually our vote has little value, but if lakhs of people pledge their votes against corruption, it will force politicians to enact this law.

Are you willing to take the following pledge?

"I solemnly pledge that I would not vote for that party which does not pass Jan Lokpal or Lokayukta Bill drafted by Citizens wherever it is in power- either at center or at state level."
 
Click here to commit your vote

I have creaed a "POSITIVE VOTE CLUB". Join this club and take a committment to vote against corruption.

Friday, January 28, 2011

एक और स्केम - सर्वोच्च स्तर पर भ्रष्टाचार

सुप्रीम कोर्ट में सरकार का नया झूट
क्या आप सपने में भी यह सोच सकते हैं कि जब प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक सर्वोच्च अधिकार प्राप्त समिति देश के केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त का चयन करती है तब उम्मीदवारों के बारे में पूरी जानकारी समिति के सामने नहीं होती? नहीं सोच सकते न? मैं भी नहीं सोच सकता, पर ऐसा हुआ है. भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को बताया है कि केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त पद के लिए चयन करते समय समिति के सामने एक उम्मीदवार पी जे थामस के खिलाफ भ्रष्टाचार के लिए चार्ज शीट और केरल सरकार द्वारा उन पर मुकदमा चलाये जाने की अनुमति के बारे में कोई जानकारी नहीं थी. विस्तृत वर्णन के लिए क्लिक करें.

यह सर्व विदित है कि इस ३ सदस्यीय समिति में प्रधानमंत्री के अलाबा गृह मंत्री और लोक सभा में विपक्ष के नेता होते हैं. विपक्ष की  नेता ने थामस के खिलाफ इस चार्ज के बारे में समिति को बताया था और उनको इस पद के लिए चुने जाने पर अपना विरोध दर्ज कराया था. लेकिन समिति ने २:१ से इस ऐतराज को रद्द करते हुए थामस को केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त के पद के लिए चुन लिया. आज कल सुप्रीम कोर्ट में इस बारे में सुनवाई हो रही है.

एक बहुत छोटे पद के लिए भी सरकारी कर्मचारियों के बारे में सम्बंधित विभाग चयन समिति को पूरा विवरण देता है जिस में विजिलेंस सम्बन्धी जानकारी भी होती है. लेकिन यहाँ देश के केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त पद के लिए चयन हुआ, चयन समिति के अध्यक्ष स्वयं प्रधान मंत्री थे, गृह मंत्री और विपक्ष के नेता समिति के सदस्य थे, पर सरकार के अनुसार यह जानकारी सम्बंधित विभाग द्वारा समिति को नहीं दी गई. मजे की बात यह है कि इस सम्बंधित विभाग के मंत्री प्रधानमंत्री स्वयं हैं. अब यह तो अपने आप में खुद एक स्केम हो गया.

अब बताइए इस देश में भ्रष्टाचार कैसे कम होगा?

Saturday, January 22, 2011

सुखी जीवन के लिए कितना धन चाहिए ?

भोपाल के आईएएस दंपत्ति, अरविन्द और टीनू  के पास ३६० करोड़ रुपये की धन-संपत्ति पाई गई है, जिन में ३ करोड़ रुपये १००० रुपये के नोटों में सूटकेसेस में भरे पाए गए. उनके पास २५ फ्लेट्स हैं, ४०० एकड़ खेती-योग्य और दूसरी जमीन है तथा काफी पैसा स्टाक्स में लगाया हुआ है. एक परिवार को रहने के लिए कितने फ्लेट्स चाहियें? कितनी जमीन चाहिए? कितना नकद पैसा चाहिए? अरविन्द और टीनू जैसे अनेक लोग इस देश में हैं जिन के पास अथाह धन-संपत्ति है, यानि उनकी अपनी आवक्श्यकता से बहुत अधिक धन है. क्या खाते हैं यह लोग? क्या पहनते हैं? कितने मकानों में एक साथ रहते हैं? एक प्रश्न मन में आता है कि सुखी जीवन के लिए आखिरकार कितना धन चाहिए?

किसी भी व्यक्ति के पास आवश्यकता से बहुत अधिक धन नहीं होना चाहिए. मनुष्य की मुख्य आवश्यकताएं होती हैं, रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, चिकित्सा, मनोरंजन, आवागमन. इनके लिए मनुष्य के पास समुचित धन होना चाहिए. कुछ धन की वचत भविष्य के लिए भी करनी चाहिए. इसके अतिरिक्त जो भी धन होता है वह ऐसे अनावश्यक कार्यों में खर्च होता है जिनसे मनुष्य के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है. अगर नागरिक
शारीरिक और मानसिक रूप से अस्वस्थ होंगे तब समाज और देश भी अस्वस्थ होगा. आज यह सब कुछ होता दिखाई दे रहा है.

आवश्यकता से बहुत अधिक धन ईमानदारी से नहीं कमाया जा सकता. उसके लिए कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में बेईमानी करनी ही पड़ती है, भ्रष्टाचार करना ही पड़ता है. बेईमानी और भ्रष्टाचार द्वारा कमाया गया पैसा आता कहाँ से है? यह पैसा आम नागरिकों की जेब से आता है. जो पैसा एक आम नागरिक को अपने और अपने परिवार की जरूरी आवश्यकताओं पर खर्च करना था वह उस से छीन लिया जाता है और बेईमानी और भ्रष्ट रास्तों द्वारा कुछ और नागरिकों की जेब में चला जाता है. न जाने कितने आम नागरिक एक सुखी जीवन ब्यतीत करने से बंचित हो जाते हैं. किसी के पास खाने के लिए पैसा नहीं होता, किसी के पास तन ढंकने के लिए कपड़ा, किसी के पास सर छुपाने के लिए छत, बीमारी के लिए दवा, बच्चों को स्कूल भेजने के लिए फीस, और अन्य साधन नहीं होते. किसी के पास इतना पैसा हो जाता है कि उसे रखने के लिए सूटकेस खरीदने पड़ते हैं. 

इंसान और इंसान के बीच की यह असमानता समाज को अस्वस्थ कर देती है. सुखी जीवन से बंचित कर दिए गए कितने ही आम नागरिक हिंसा के रास्ते पर चले जाते हैं, समाज में अपराध बढ़ जाता है. पुलिस, न्यायपालिका और सरकार इन बंचित नागरिकों पर और अन्याय करना शुरू कर देती है. उनकी मजबूरी न समझ कर उनके साथ ऐसा अमानवीय व्यवहार करती है कि उनमें से कुछ नागरिक घोर अपराधी बन जाते हैं. जिन्होनें इन्हें अपराधी बनाया उन्हें पुरूस्कार दिए जाते हैं, उन्हें सम्मानित नागरिक कहा जाता है, वीआईपी और वीवीआईपी जैसे उपाधियों से नवाजा जाता है.

अरविद-टीनू और इन जैसे कितने बेईमान और भ्रष्टाचारी आज समाज के सामने नंगे खड़े हैं पर क्या इन्हें इनके अपराधों का कोई दंड मिल पायेगा? कानून को इस तरह तोडा-मरोड़ा जाएगा कि अंततः यह सब अपराधी सम्मान पूर्वक सुखी जीवन बिताने रहेंगे और इस महान राष्ट्र के असहाय आम नागरिक
सम्मान पूर्वक सुखी जीवन बिताने से बंचित किये जाते रहेंगे.

Friday, January 21, 2011

भ्रष्टाचारियों को सुरक्षा, विरोधकर्ताओं पर लाठीचार्ज

साथ की फोटो पर क्लिक करें और पढ़ें. उत्तर प्रदेश में अगर आप से रिश्वत मांगी जाए तब चुपचाप दे दें, विरोध करने पर आप को पुलिस की लाठियों का सामना करना पड़ेगा. आप को गिरफ्तार कर लिया जाएगा. मजिस्ट्रेट इस बात पर नाराज हो जाएगा की पुलिस ने आप को हथकड़ी क्यों नहीं लगाई. आप पर गैर-जमानती आरोप लगा कर जेल भेज दिया जाएगा.

यह सब अरविन्द केजरीवाल और उनके साथिओं के साथ हुआ. वह एक जाने-माने सूचना अधिकार से सम्बंधित सक्रीय कार्यकर्ता हैं. अभी वह डासना जेल के रास्ते में ही थे की उच्च पुलिस अधिकारियों को इस की जान कारी कहीं से मिल गई और वह रिहा कर दिए गए.

अपने लेख के अंत में अरविन्द कहते हैं, इस का मतलब हुआ की पुलिस कभी भी किसी को भी गिरफ्तार कर सकती है, उस पर कोई भी आईपीसी सेक्शन लगा सकती है, मजिस्ट्रेट आँखें बंद कर के पुलिस की बात मानेगा और आप को जेल भेज देगा, आप अपने बेगुनाह होने की बात करेंगे तो मजिस्ट्रेट कहेगा, पहले आप जेल जाओ, पुलिस बाद में आप के अपराध की जांच कर लेगी. है न कितना डरावना !!!

भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्यवाही क्यों नहीं?

एक ईमानदार वन अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के साथ पांच वर्ष से हो रहे अत्याचार पर शायद अब लगाम लग जायेगी. यह अधिकारी हरयाणा की सरस्वती वनजीवन अभ्यारण्य का प्रभारी था. इस का दोष यह था कि इसने एक नहर निर्माण में बहु-करोड़ घोटाले का भंडाफोड़ किया था. भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गई, पर पांच वर्षों में इस अधिकारी का १२ बार तबादला किया गया, पदोन्नति नहीं की गई, एक झूटी चार्जशीट लगा कर सस्पेंड किया गया. केन्द्रीय अधिकारियों द्वारा जांच की रिपोर्ट में इस अधिकारी को निर्दोष पाया गया, और वन मंत्री किरण चौधरी और अन्य कई अधिकारियों को दोषी पाया गया. लेकिन हरयाणा सरकार इसे दण्डित करने पर अड़ी रही और नौकरी से बर्खास्त करने की धमकियाँ देती रही.

अब केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री ने इस अधिकारी पर लगाए गए सारे आरोपों को रद्द कर दिया है. इस बारे में राष्ट्रपति के आदेश के जल्दी आ जाने की सम्भावना है. 

अब प्रश्न यह है, क्या दोषी मंत्री और अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्यवाही की जायेगी या हरयाणा सरकार, उस के मंत्री और अफसरों को इस अपराध के लिए माफ़ कर दिया जाएगा?

मेरी पिछली पोस्ट पढ़ें:
सरकार भ्रष्टाचारियों के साथ है
सरकार द्वारा भ्रष्टाचार का पोषण

Wednesday, January 19, 2011

Open letter to leaders on corruption & governance deficit

A group of 14 prominent and well-regarded citizens has written an " Open Letter To Our Leaders" to express alarm at the "governance deficit" in "government, business and institutions", and underline the "urgent need" to tackle the "malaise of corruption, which is corroding the fabric of our nation." 

Some quotes from the letter:

"out of several urgent steps to tackle corruption, the most critical is to make the investigative agencies and law-enforcing bodies independent of the Executive... in order to ensure citizens that corruption will be most severely dealt with".
"In the last few months, the country has witnessed eruption of a number of egregious events, thanks to an active media eagerly tracking malfeasance. There are, at present, several loud and outraged voices, in the public domain, clamouring on these issues, which have deeply hurt the nation,"
"Widespread discretionary decision-making has been routinely subjected to extraneous influences... The judiciary is a source of some reassurance but creation of genuinely independent and constitutionally constituted regulatory bodies, manned by persons who are judicially trained in the concerned field, would be one of the first and important steps to restore public confidence."
"We are alarmed at the widespread governance deficit almost in every sphere of national activity covering government, business and institutions,"

"corruption is possibly the biggest issue corroding the fabric of our nation, the malaise needs to be tackled with a sense of urgency, determination and on a war footing."

"we are concerned with the general deterioration in the overall value system of the nation,

"have abiding belief and commitment in India's potential and prospects as a successful democracy."

"It is widely acknowledged that the benefits of growth are not reaching the poor and marginalized sections adequately due to impediments to economic development. This is because of some critical issues like environmental concerns and differences in perspectives between central and state governments,"

"those at the helm must urgently restore the self-confidence and self-belief of Indians in themselves and in the state."

The group has called for the setting up of "effective and fully empowered Lok Ayuktas" in every state and "early introduction of the Lok Pal Bill at the national level for the purpose of highlighting, pursuing and dealing with corruption issues and corrupt individuals". 

The group is also implicitly critical of the opposition for blocking almost the entire Parliament session gone by. It says elected representatives need to "distinguish between dissent and disruption". 
(from newpapers)

Tuesday, January 18, 2011

Govt survives on corruption and corrupt

The question which SC asked the Govt is a question which every Indian citizen is asking - "How P J Thomas will function as CVC - Whenever he will entertain a complaint and order inquiry, he will face the question - 'you yourself are an accused, how can you look in to another complaint'."The Govt has not answered this question but is harping on its prerogative as an appointing authority.

The Govt says that unanimity in a democratic selection process does not always work. OK, it is accepted, but how the majority view is achieved? The panel has three members, PM, Home Minister and Leader of Opposition. PM and HM belong to the Govt. They will always have the same view. If LoP is having a different view then it will have no effect. In this case it has haapened. PM and HM wanted Thomas so he was appointed as CVC. LoP pointed out towards the fact that Thomas is a tainted person as he was accused of criminal conspiracy in the palmolein oil import scam. What effect it had on the choice of Thomas as CVC? What is the use of having such a panel? Whom the Govt is making fool of? If the panel had equal number of members fron Govt and opposition then it was not possible for a tainted Thomas to become CVC.

Another point, the Govt had asked Thomas to resign. Why did it do so, if what it says in the affidavit is correct - "The PM and the home minister found Thomas as the most suitable candidate to hold the post of CVC".



The cat is out of the bag. Govt attitude in case of every scam is clear. It wants to protect the corruption and the corrupt. Its survival is dependent on the survival of corruption and the corrupt. They are the family.

Wednesday, January 12, 2011

सरकार द्वारा भ्रष्टाचार का पोषण

कुछ दिन पहले मैंने एक पोस्ट लिखी थी - सरकार भ्रष्टाचारियों के साथ है. इस में मैंने लिखा था कि किस प्रकार एक ईमानदार और कर्तव्य परायण अधिकारी को हरियाणा सरकार इस लिए परेशान कर रही है क्योंकि उस ने भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई थी. संजीव चतुर्वेदी के पांच वर्ष में १२ तबादले किये गए, झूठी चार्जशीट दी गई, फिर सस्पेंशन किया गया, कोई पदोन्नति नहीं, प्रदेश सरकार द्वारा डिसमिस करने की धमकी दी गई. भ्रष्टाचारियों में एक की पदोन्नति हो गई, एक को प्लम पोस्टिंग मिली. प्रदेश सरकार भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्यवाही करने के बजाय भ्रष्टाचारियों के साथ मिल गई. केंद्र सरकार की जाँच में यह सिद्ध हो गया कि संजीव को फंसाया गया है, चार्जशीट झूठी है, पर कुछ नहीं किया गया. मीडिया में बात उठी तब केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ने चार्जशीट को रद्द किया, पर अब यह पता चला है कि यह मंत्री भी पलट गया और मामला फिर दोषी प्रदेश सरकार के सवाले कर दिया गया, जो अब संजीव को डिसमिस करने जा रही है.

केंद्र सरकार भ्रष्टाचार पर शून्य सहनशीलता की बात करती है पर भ्रष्टाचार न सिर्फ बढ़ता जा रहा है बल्कि खुद सरकार भी भ्रष्टाचारियों की ही मदद कर रही है. प्रधानमंत्री और सोनिया भाषण देते हैं पर करते कुछ नहीं. संजीव पर अत्याचार बढ़ता जा रहा है. उस बेचारे को नौकरी ही खतरे में पड़ गई है. अब इस में किसी को संदेह नहीं होना चाहिए कि सरकार हकीकत में भ्रष्टाचार का पोषण कर रही है. इस सरकार के रहते भ्रष्टाचार कम होने वाला नहीं है.

Monday, January 03, 2011

क्या इंदिरा गाँधी को भारत रत्न मिलना चाहिए था?

इंदिरा गांधी को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने चुनावी धांधली के लिए दोषी ठहराया था. इस से नाराज हो कर उन्होंने देश में आपातकाल लगा दिया. इस के लिए उन्होंने न तो अपने मंत्रिमंडल से संपर्क किया, न ही अपने कानून मंत्री और गृहमंत्री से संपर्क किया. राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद से मात्र अपनी सिफारिश पर भारतीय लोकतंत्र का न केवल घोर अपमान किया बल्कि लोकतंत्र को ही अनिश्चितकाल तक निलंबन में रखवा दिया. बाद में लोकतंत्र के इस घोर अपमान को सुप्रीम कोर्ट द्वारा सही ठहरवा दिया.

अब सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि १९७६ में इमरजेंसी पर उसके एक फैसले से देश की बड़ी आबादी के मूलभूत अधिकारों का हनन हुआ था. जस्टिस आफताब आलम और जस्टिस अशोक कुमार गांगुली ने एक फैसले में कहा है कि एडीएम जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला केस (1976) में इमरजेंसी के दौरान मूलभूत अधिकार तात्कालिक तौर पर खत्म करने का जो फैसला पांच सदस्यों वाली संविधान पीठ ने कायम रखा, वह गलत था. जस्टिस गांगुली ने कहा, इसमें कोई संदेह नहीं कि कोर्ट के बहुमत से लिए गए उस फैसले से देश की बड़ी आबादी के मूलभूत अधिकारों का हनन हुआ था. बहुमत के उस फैसले में जस्टिस खन्ना ने अलग फैसला देते हुए कहा था कि हाई कोर्ट बंदी प्रत्यक्षीकरण पर रिट जारी कर सकता है और यह संविधान का अभिन्न अंग है। संविधान में किसी अथॉरिटी को यह अधिकार नहीं है कि इमरजेंसी के दौरान हाई कोर्ट के इस अधिकार को सस्पेंड कर दे। बाद में जस्टिस खन्ना की उस अलग राय के अनुसार संविधान के 44वें संशोधन के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता को इमरजेंसी के दौरान सस्पेंशन के दायरे से अलग कर दिया गया।

यह सही है कि बाद में इंदिरा गाँधी फिर प्रधान मंत्री बन गईं, पर उनका भारत राष्ट्र, भारतीय लोकतंत्र और भारतीय नागरिकों के खिलाफ
इमरजेंसी के अपमानजनक हथियार का प्रयोग करने का अपराध इतिहास का एक ऐसा हिस्सा है जिसे मिटाया नहीं जा सकता. जब कभी भी इंदिरा गाँधी का नाम लिया जाएगा, उस के साथ इमरजेंसी का नाम भी लिया जाएगा. क्या ऐसे व्यक्ति को भारत का रत्न कहा जाना चाहिए? कभी नहीं. इंदिरा गाँधी को दिया गया भारत रत्न वापस लिया जाना चाहिए.