I will not make any chutney of this news except saying that it is shameful for shameless political parties and politicians.
दलितों के नाम पर दलितों के नेताओं की मूर्तियाँ और स्मारक बना कर यह नेता इतिहास में अमर होने का प्रयास कर रहे हैं. दलितों को रोटी चाहिए नेताओं की मूर्ति नहीं. उन्हें सम्मानपूर्वक जीने का अवसर चाहिए, इन नेताओं के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिए यह स्मारक और पार्क नहीं. दो जून की रोटी जुटाने के लिए यह दलित अपना मकान, जमीन और पत्नी तक गिरवी रख देते हैं, और यह नेता करो़डों रूपए अपनी मूर्तियाँ बनाने पर वेदर्दी से खर्च कर देते हैं. अगर अपनी पूजा करवाने का इतना ही शौक है तो यह नेता खुद क्यों नहीं मूर्तियों की जगह खड़े हो जाते? पत्थर की मूर्तियों की जगह जिन्दा मूर्तियों की पूजा करना ज्यादा बेहतर होगा.
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