They call it privatization of power distribution, but in fact it is a money game. They have all excuses to defend their corruption, ineffecient and ineffecrtive working. Poor consumer was always a victim and now also he is the victim.
ग्राहक राजा है, कह कर ग्राहक को खूब मूर्ख बनाते हैं यह सरकार, एनजीओ और उत्पाद-सेवा विक्रेता. सरकार ने कानून बनाया, ग्राहक अदालतें बना दीं. दूसरी अदालतों की तरह वकीलों ने इन पर भी कब्जा कर लिया. एक आम ग्राहक खुद इन ग्राहक अदालतों में अपना केस नहीं लड़ सकता. बड़े सरकारी महकमे, उत्पाद-सेवा विक्रेता बड़े-बड़े वकील खड़े कर देते हैं. लाखों रुपये इन वकीलों को दे देते हैं पर कुछ रुपयों का मुआवजा एक असंतुष्ट ग्राहक को नहीं दे सकते. ग्राहक अदालतों में वकीलों के प्रवेश पर पावंदी लगनी चाहिए.
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